ठंड से काँपते बच्चे को परवरदिगार बनाके आया हूँ,
कबूल होगी दुआ में मज़ार पे चादर चढ़ाके आया हूँ,
बरसों से की शिवलींग की पूजा आज भोले खुश हुए,
एक बूढ़ी औरत को दूध का लौटा पिलाक़े आया हूँ,
देखी आज उनकी हँसी, मुस्करा रहे थे ईसा मसीह,
एक तिनके की झोपड़ी में मोमबत्ति जलाके आया हूँ,
फक्र होगा गुरु नानक जी को मुझ पे आज फिर,
नि:वस्त्र बेबस लड़की को पगड़ी में लपेटके आया हूँ,
कुदरत भी महेरबान होगी आज मुझ पे यारों,
मोहब्बत से इंसान को इंसानियत शिखाके आया हूँ,
ठंड से काँपते बच्चे को परवरदिगार बनाके आया हूँ,
कबूल होगी दुआ में मज़ार पे चादर चढ़ाके आया हूँ।
- निशांक मोदी
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