Sunday, February 25, 2018

रुक जाए जो कलम

रुक जाए जो कलम, वो लोग स्याही बदल देते है,
देर हो जाए मंज़िल पाने में लोग राही बदल देते है,

अर्ज़ी करता हु रोज न्यायालय को, सुनादे फैसला,
चंद रूपियों की खातिर लोग गवाही बदल देते है,

जलाने चला था, एक पडोशी मुल्क बड़े जोर से,
देश में शांति रखो, इरादे मेरे तबाही बदल देते है,

सुन लिया कर एक बार में तेरे बंदों की फ़रियाद,
छोटी छोटी तकलीफ में लोग खुदा ही बदल देते है,

देखा दो पंछियो को प्यार करते हुए,अच्छा लगा,
नजाने हम इंसान किस तरह हमराही बदल देते है,

रुक जाए जो कलम, वो लोग स्याही बदल देते है,
देर हो जाए मंज़िल पाने में लोग राही बदल देते है।
- निशांक मोदी

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