सारा जहाँ में घूम के आया, घर का कोई कोना बाकी था,
मालूम नही परेशान करती बीमारियों मे कोरोना बाकी था,
घर मे अंदर बैठकर, खुद बाहर से ताला लगाया हमने,
थोड़ा तो वक़्त दे देते यारोँ किसी का घर पे आना बाकी था,
जिंदगी दे रहे है जो लोग, उनकी जिंदगी की भी तू कद्र कर,
मत दिला अहसास बारबार, की फर्ज तुम्हारा निभाना बाकी था,
आसमान को छूनेवाला इंसान, डर रहा है एकदूसरे को छूने से,
जैसे कुदरत कह रही है कि, 'देख पुराना हिसाब चुकाना बाकी था',
सारी महत्वकांशा को चुटकी में खत्म कर दफना दिया लोकडाउन ने,
तू बता, एक साँस के अलावा क्या खोना और क्या पाना बाकी था,
हा, थोड़ा मुश्किल है, घर मे बैठकर कर इस तरह वक़्त बिताना,
गौर से देखो तो समझ आये सबकुछ पाकर भी जीना बाकी था,
सारा जहाँ में घूम के आया, घर का कोई कोना बाकी था,
मालूम नही परेशान करती बीमारियों मे कोरोना बाकी था।
- निशांक मोदी
No comments:
Post a Comment