Sunday, May 24, 2020

न तुम शहर बदल पाए

ना तुम शहर बदल पाए, ना तुम घर बदल पाए,
ना तुम समय की मार, ना तुम क़हर बदल पाए,

कभी बेख़ौफ़ जीने की लत जो लग गई थी तुम्हे,
देखो आज ना तुम भय, ना तुम डर बदल पाए,

ऐसा होता तो ये कर देता वैसा होता तो ये कर देता,
धरी की धरी रह गई बातें, 
ना तुम अगर बदल पाए, ना तुम मगर बदल पाए,

सुना है, अब अखबार पढ़ना छोड़ दिया तुमने,
सही किया, ना तुम हालात, ना तुम खबर बदल पाए,

मिलो तक का सफर चंद घंटो मे तय किया करते थे,
वो दिनों में तब्दील हुआ, बस ना तुम डगर बदल पाए,

सबको सहलाकर संभाल लेने की जो आदत थी ना,
ना आज छू सकते हो, ना तुम मिला वो ज़हर बदल पाए,

ना तुम शहर बदल पाए, ना तुम घर बदल पाए,
ना तुम समय की मार, ना तुम क़हर बदल पाए।
- निशांक मोदी

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