Monday, July 23, 2018

हिंदी कविता

कच्ची ईंटे, सस्ती सीमेंट, बढ़ तो जाएगी कीमत मकान की,
गिरती हुई ईमारत पूछेगी, क्या नही होती कीमत जान की,

गौ हत्या के हत्यारे को मार कर देख कैसे ले लिया बदला,
आग बुजाने आग लगा दी दोस्त, कीमत नही यहाँ इंसान की,

कचरे के ढ़ेर पर सूखती रोटी देखकर खयाल आया,
क्यो भर रहा है वो लॉन आज, कीमत नही बेबस किसान की,

गिनते गए पैसा, कमाते गए इज्जत, आखिर में शून्य,
कोई एक बार पूछ आओ, मिट्टी की कीमत उस स्मशान की,

कौन कहता है, मुहोब्बत बड़ी महँगी चीज़ है यारो,
बस एक बार बंध तो हो जाये, ये कीमती नफ़रतें दुकान की,

कच्ची ईंटे, सस्ती सीमेंट, बढ़ तो जाएगी कीमत मकान की,
गिरती हुई ईमारत पूछेगी, क्या नही होती कीमत जान की।
- निशांक मोदी

No comments:

Post a Comment