Tuesday, January 7, 2020

जले हुए जंगल या शहर

कुछ जंगल जल गए,
कुछ जानवर मर गए,
जो कोई भी बच गए,
शहर के अंदर धस गए,

देखा तो अफरातफरी यहां भी है,
इंसान कम जानवर तो यहां भी है,
जलकर मर जाते तो अच्छा होता,
पथ्थरों के शहर में आग यहां भी है,

खुश नसीब है तो वो सिर्फ परिंदे,
शायद वो ही है बचे खुदा के बंदे,
आसमान ही रह गया बिना जले,
शहर में बेखौफ जी रहे सारे दरिंदे,

वो लौट जाना चाहते है घर पर,
शहर में तो मर जायगे रह कर,
जंगल की आग तो बुझ जाएगी,
पर शहर की आग न रुकेगी पलभर,

चल वापस जाकर जंगल मे जल जाते है,
इंसान मार दे हमे उससे पहले मर जाते है,
कह देंगे सबको शहर में जानवर देख आए,
शहर का पिंजरा छोड़ चल हम घर जाते है।
- निशांक मोदी

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