Tuesday, October 9, 2018

ना पाए

इतना न करो मशहूर, की हम झेल ना पाए,
सामने हो मंजिल, दो कदम हम चल ना पाए,

शाम को परवाना अंधेरा साथ लेके आएगा,
लगाव इतना भी ना रख शमा, तू जल ना पाए,

झूठ बोलके पूरे शहर को बेवकूफ बना दिया,
अफसोस यही कि खुद के मन को छल ना पाए,

किसीने संदेह किया है उसके उजाले पे वर्ना,
होता नही कभी की सूरज शाम को ढल ना पाए,

थोड़े नमकीन आँसूओ ने बर्फ़ को भिगों दिया,
रो रहा बर्फ़ सोचकर कि वो क्यों पिगल ना पाए,

इतना न करो मशहूर, की हम झेल ना पाए,
सामने हो मंजिल, दो कदम हम चल ना पाए।
- निशांक मोदी

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