Friday, September 11, 2020

आज मेरा घर टूटा है, कल तेरा घमंड टूटेगा

आज मेरा घर टूटा है, कल तेरा घमंड टूटेगा,
आज संग समय का पहिया नजाने कब रूठेगा,

दोपहरी तपती धूप में जलना तेरा वाजिब लेकिन,
कभी तो शाम होगी यहां, कभी तो सूरज डूबेगा,

गलतफहमी की आखिर तक पास होंगे लोग मेरे,
आज जो हाथो मे हाथ है ये साथ भी कभी छूटेगा,

मदहोशी में जी रहा इंसान खुद को खुदा मानके,
लूटकर जो खड़ा किया कारवां वो भी कोई लूटेगा,

फर्क होता है आसमान के सितारे और गुब्बारे में,
जो हवा के बहकाने से उड़ा किसी धार से फूटेगा।

- निशांक मोदी (पहेली पंक्ति मेरी नही है)

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