Saturday, August 1, 2020

अभी तो सोया था में और अभी सुबह हो गई

अभी तो सोया था में और अभी सुबह हो गई
कहा खो गई मेरी परछाई,
सामने लौट फिर आई तन्हाई,
एक तरफ चुभे चादर की सिलवटे,
दूसरी ओर दर्द बाँटे मखमली रजाई,

दिन के उजाले में साथ देती जो हिम्मत,
खिलाफ जाकर रात में नजाने क्यू गवाह हो गई,
अभी तो सोया था में और अभी सुबह हो गई,

वक़्त इतना कम की सपने नही आते,
कभी आ भी जाए तो अपने नही आते,
नींद मिले तो कहना फुरसत लेकर जाना,
कुछ लोग है जिन्हें घड़ी के कांटे मापने नही आते

एक साथ, एक हमसफ़र, कुछ पल ही तो मांगे थे,
छाया अंधेरा ऐसा की ख्वाहिशे सारी गुनाह हो गई,
अभी तो सोया था में और अभी सुबह हो गई,

सोचा मांग लू कुछ, पर अब सितारे कहा टूटते है,
सामने मिल जाये तो ठीक वरना लोग कौन पूछते है,
सिर्फ सुबह, दोपहर, शाम, रात कटती नही यहाँ,
मिनिटे, घण्टे, दिन, महीने, साल किस्तो में गुजरते है,

घर के हालात तो ठीक है, जिंदगी के हालात भी पूछो,
सुबह होकर दोहराते, कल फिर एक रात तबाह हो गई,
अभी तो सोया था में और अभी सुबह हो गई।
- निशांक मोदी

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